Friday, October 9, 2009

हम ही काटेंगे इंडिया की नाक !

दिल्ली है दिलवालों की..। इसीलिए कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 का बीड़ा उठाने के बाद. इसी दिल्ली की नाक कटवाने का बंदोबस्त कर लिया गया है..। कॉमनवेल्थ में पूरी दुनिया से खिलाड़ी आएंगे और पूरी दुनिया कॉमनवेल्थ गेम्स के बहाने दिल्ली को भी देखेगी..। लेकिन उन्हें देखने को मिलेगा क्या..।
जहां लिखा है कि कूड़ा डालना मना है, वहीं सबसे ज्यादा कूड़ा .पता नहीं.ये सूचना पढ़कर लोग उल्टा मतलब निकाल लेते हैं शायद।
जिस दीवार पर लिखा मिल जाए कि यहां पेशाब करना मना है, उसे तो लोग सुलभ शौचालय की तरह इस्तेमाल करते हैं..। आस पास के लोग और राहगीर भी खासतौर पर उसी दीवार को अपना निशाना बनाते हैं..
दिल्ली वालों को साफ सुथरी स्याह सड़कें पसंद नहीं आतीं..
खासतौर से उन लोगों को जो पान और गुटखा खाने के शौकीन हैं. और उनके शौक का शिकार बनती है सड़कों की ख़ूबसूरती..दिल्ली की किसी भी सड़क और दीवारों पर हर जगह लाल रंग के पीक के निशान देखने को मिल जाते हैं.

पैदल चलने वालों पर गलत तरीके से सड़क पार करने के लिये चालान लागू किया गया तो खूब हंगामा मचा, लेकिन तमाम चालान और नियम कायदों के बावजूद दिल्ली में पैदल चलने वाले लोगों की चाल पर कोई असर नहीं पड़ा। उनकी चाल ज्यों की त्यों मदमस्त है।
सरकार ने करोड़ो की लागत और लाखों के घोटालों के बाद सबवे और फुट ओवरब्रिज बनवा तो दिये लेकिन इनका इस्तेमाल करने की ज़हमत कौन उठाए..। सड़क पार करने का इतना बोरिंग तरीका दिल्ली वालों को बिल्कुल पसंद नहीं। अरे भई, जान पर खेलकर सड़क पार करने का मज़ा ही कुछ और है और उसमें ट्रैफिक तेज़ी से भाग रहा हो तो मज़ा दुगुना हो जाता है।
तेज़ रफ्तार ट्रैफिक से राहगीरों को बचाने के लिये उन्हें बेतरतीब तरीके से सड़क पार करने से रोकना था.इसलिये सरकार ने सड़क के डिवाईडर पर बड़ी बड़ी रेलिंग्स तो लगा दीं। लेकिन दिल्ली वालों के लिये इन बड़ी-बड़ी रेलिंग्स को पार करना बहुत छोटी बात है.मानो हर्डल रेस की प्रैक्टिस कर रहे हों.और जिनकी लम्बाई थोड़ी कम है.वो तो इन रेलिंग्स के बीच से ही निकल जाते हैं।
बहरहाल, ये तो थी पैदल चलने वालों की बात..। कार में सवार दिल्ली वाले तो पैदल चलने वालों से भी दो कदम आगे हैं..। ट्रैफिक लाइट रेड हो जाने पर रुकना तो इनकी फितरत में ही नहीं है..। वन वे में उल्टी तरफ से गाड़ी चलाने में जो रोमांच इन्हें मिलता है उसका तो कोई जवाब ही नहीं..।
ज़ेब्रा क्रासिंग बनाई तो गई थी पैदल यात्रियों के सड़क पार करने के लिये, लेकिन सिग्नल रेड होने के बाद कार और बाइक सवार ठीक ज़ेब्रा क्रासिंग पर गाड़ी खड़ी करने को अपनी शान समझते हैं..। शायद ज़ेब्रा क्रासिंग पर खड़े होने का अहसास कुछ और होता हो....यानी ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कॉमनवेल्थ में विदेशी हमारे यहां आएंगे और हमारी मस्तानी चाल देखकर हैरान रह जाएंगे..।
लेकिन दिल्ली वाले दिल के इतने अमीर हैं कि उन्हें इन छोटी मोटी बातों से कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता..। कॉमनवेल्थ खेलों में देश की नाक कटे या रहे.. हम तो भई जैसे हैं.वैसे ही रहेंगे।

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