Friday, May 29, 2009

अलबलाइटिस

अलबलाइटिस एक ऐसे रोग का नाम है जो किसी को कभी भी हो सकता है.इस रोग का ईजाद मेरे चैनल के संवाददाता ने किया था लेकिन अब ये रोग महामारी की तरह तेजी से फैल रहा है.इसे जल्द ही नहीं रोका गया तो ये पूरी दुनिया को अपने कब्जे में ले लेगा.
रोग के लक्षणों से आपको वाकिफ कराता हूं.

1- किसी प्रतिद्वंदी से आगे निकलने की होड़ में ऊट पटांग और बिना सिर पैर की बातें करना
2- किसी को नीचा दिखाने के लिये फेंकने की हद पार कर जाना
3- बेहया की तरह सफेद झूठ बोलना
4- बेइज्जत हो जाने के बाद दांत निपोरना
5- अपने आप को सच साबित करने के लिये किसी भी हद तक गिर जाना
6- लोगों के ध्यानाकर्षण के लिये अल-बल बकवास करना और ज़बरन हंसाने की कोशिश करना
7- चुटकुले करने के बाद लोगों के ना हंसने पर अपने ही जोक पर खूब ज़ोर ज़ोर से हंसना ताकि चुटकुले का सम्मान बचा रहे
8- अपने दादा परदादा की इतनी तारीफ करना की लोग उन्हें सुपरमैन समझ लें
9- किसी लड़की के मुस्कुरा देने के बाद दोस्तों को दिखाना कि वो लाइन दे रही है

तो मित्रों कुल मिलाकर इंसान जब अलबला जाता है तो अलबलाइटिस का शिकार हो जाता है.अब तक मेरे द्वारा किये गए रिसर्च में इस रोग के ये मुख्य लक्षण सामने आए हैं.मुझे तो डर लग रहा है क्योंकि इस रोग के कुछ लक्षण मेरे अंदर भी हैं शायद आपके अंदर भी हों.इससे बचने के उपाय पर मेरी रिसर्च जारी है.धन्यवाद

Wednesday, May 27, 2009

ट्रांसफर केबल बाबा की जय हो

आज की रिपोर्टर की संजीवनी बूटी कह लीजिये या फिर सबसे धाकड़ जुगाड़ का सामान.
बन्दे को ट्रांसफर केबल कहते हैं
उपनाम -फायर वायर.
लंबाई तकरीबन 30 इंच
रंग- काला,सफेद,लाल,हरा इत्यादि
उम्र- अनिश्चितकालीन
खासियत-सारे रिपोर्टरों की नौकरी बचाने की क्षमता
रिपोर्टर जब अपनी युनिट पैक करवा रहा होता है तो कैमरामैन से एक सवाल ज़रूर पूछता है"ट्रांसफर केबल रखी या नहीं".पूछे भी क्यों ना एक ही रात में एक चैनल के एक ही रिपोर्टर के पास गुड़गांव से लेकर ग्रेटर नोएडा तक की खबरें होतीं हैं,सब इन्हीं ट्रांसफर केबल बाबा की देन है.कुछ रिपोर्टरों ने तो इसे ही अपनी जीविका का साधन बना लिया है.और कुछ के लिये यही जीविका का साधन बन गई है.न्यूज़ चैनल्स की भीड़ में रिपोर्टर्स के बीच जो सामंजस्य बन गया है वो ट्रांसफर केबल बाबा का आशिर्वाद ही तो है.रिपोर्टर को CSR (कॉमन सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी) सिखाने का काम भी टी.सी बाबा के आशिर्वाद की ही देन है.किसी भी रिपोर्टर की नौकरी कभी भी खतरे में पड़ जाए, बड़ी से बड़ी खबर छूट जाए या फिर छोटी से छोटी, टेन्शन नहीं लेने का ट्रांसफर केबल बाबा के पास जाने का..कभी कभी आस पास से गुज़र रहे लोगों की नज़र उन कैमरों पर अनायास ही पड़ जाती है जो कार की छत पर या फिर बोनट पर या फिर ज़मीन पर रखे होते हैं और उन सब में से निकले हुए ट्रांसफर केबल एक दूसरे में कुछ इस तरह जुड़े होते हैं कि समझ में ही नहीं आ रहा होता कि आखिर कौन किसे ट्रांसफर दे रहा है,और कौन किससे ट्रांसफर ले रहा है.दोस्तों यही तो ट्रांसफर केबल बाबा की माया है.तो सभी रिपोर्टर भक्तों ज़ोर से बोलो-ट्रांसफर केबल बाबा की जय हो

पत्थर

एक बार की बात है, मैं नया नया जनमत में क्राइम रिपोर्टर बना था.यूं तो क्राइम रिपोर्टिंग का बड़ा शौक था लेकिन कभी इतनी कर्री क्राइम रिपोर्टिंग की नहीं थी.रात की शिफ्ट के दौरान एक रोज़ मुझे ख़बर मिली की बाराखम्भा रोड पर एक बिल्डिंग से किसी आदमी ने छलांग लगा कर सुइसाइड कर लिया है.हम अपनी युनिट के साथ वहां पहुंचे तो देखा कि एक अधेड़ उम्र का आदमी बिल्डिंग के नीचे टुकड़ों में पड़ा हुआ था.मंजर इतना खौफनाक था कि मुझे चक्कर आने लगे.उसके बाद तीन चार दिनों मुझे सपनों में भी वही सब नज़र आता था.
और आज मैं सोचता हूं,एक वो भी अभिषेक था.करीब एक साल पहले नोएडा में शीबा नाम की एक एक्स एयर होस्टेस का मर्डर हो गया.हम वहां पहुंचे तो अस्पताल की शवगृह में उसकी लाश रखी थी.कुछ देर तक हम सारे रिपोर्टर्स वहां खड़े होकर एक दूसरे से सीएसआर(कॉमन सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी) के तहत शॉट्स और डिटेल्स का आदान प्रदान कर रहे थे.थोड़ी देर में लाश से रिस रहा खून पास में खड़े रिपोर्टर्स के पांवों तक पहुंच गया.हंसी ठिठोली में मशगूल मैंने कहा "अरे थोड़ा साइड हो जाओ वर्ना 120 बी में तुमलोग भी बुक हो जाओगे." और हम सब एक कदम दूर हटकर खड़े हो गए और फिर से अपनी अपनी बकवास करने लगे.थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ कि कोई हमें देख रहा है.मरने वाली का ब्वॉयफ्रेंड हमें बहुत देर से देख रहा था.जब मेरी नज़रें उससे मिलीं तो मैं शर्मिंदा हो गया.लेकिन वो मुझसे पूछ बैठा "तुम लोग रिपोर्टर हो या पत्थर".और तब से मुझे वाकई एहसास होता है कि हमारे अंदर का एहसास मर चुका है.खून और लाशें देख-देख कर अब उनकी कोई कद्र नहीं रह गई है.

Monday, May 18, 2009

भोकाल टाइट तो फ्यूचर ब्राइट

टाइटल पढ़कर चौंकियेगा मत, ये ज़िदगी की असलियत है।बचपन में ये कहावत थी लेकिन जब से दुनियादारी सीखी है,ये चरितार्थ हो गई है।कभी ऑफिस में तो कभी परिवार में तो कभी दोस्तों के बीच जिसका भी भोकाल टाइट रहा उसका फ्यूचर निश्चित तौर पर ब्राइट हुआ है। भोकाल टाइट का मतलब शब्दों में समझाना नामुमकिन है। इसके लिये कुछ उदाहरण ही काफी हैं। जैसे ऑफिस से किसी टुच्चे से काम के लिये भेजे जाने पर मैंने विरोध किया और कहा कि मेरी शिफ्ट खत्म हो गई है, और भी लोग हैं उन्हें क्यों नहीं भेजते, तो मुझे जवाब मिला कि उन लोगों का भोकाल टाइट है। वो टका सा जवाब देंगे और चलते बनेंगे। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं तो उन लोगों के सामने बहुत ही तुच्छ प्राणी हूं। मैंने कभी अपना भोकाल टाइट करने की कोशिश नहीं की, लगता है इसीलिये मेरे फ्यूचर से खिलवाड़ हो रहा है। भोकाल टाइट करने के लिये सबसे पहले बॉस को खोफ्चे में लेना पड़ता है। उसके बाद सहकर्मियों से थोड़ी दूरी बनानी पड़ती है। बॉस जब भी ऑफिस में नज़र आए तो उससे चिपक जाना पड़ता है। कोई कुछ काम बोले तो उसे बहुत ही बिज़ी होकर दिखाना पड़ता है। तब जाकर धीरे धीरे भोकाल टाइट होता है। और हां जिन लोगों का भोकाल टाइट होता है उनका ही फ्यूचर ब्राइट होता है।