Sunday, October 25, 2009

बीजेपी का क्या होगा कालिया !

ये सवाल पूछने के लिये किसी कालिया को सामने खड़ा करने की ज़रूरत नहीं।क्योंकि बीजेपी की हालत को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वालों का क्या हश्र होता है। कभी शहरी वोटरों के दम पर सत्ता में आने वाली बीजेपी को आज शहर में ही सबसे कम वोट मिल रहे हैं। इसके पीछे कारण भी बीजेपी के ही पैदा किये हुए हैं। वरुण गांधी और बाल ठाकरे जैसे लोगों का साथ देकर बीजेपी ने शहरी वोटर को भड़का दिया। रही सही कसर पूरी कर दी बीजेपी के अड़ियल और बूढ़े हो चुके नेतृत्व ने।कभी संघ से दूर तो कभी संघ के पास, कभी मंदिर से दूर तो कभी मंदिर के पास, बिन पेंदे के लोटे की तरह बीजेपी लोट रही है। आम वोटर को समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वो बीजेपी को वोट क्यों दे। बीजेपी मुख्यालय में जश्न देखे हुए तो अरसा हो गया है। बीजेपी के आला नेता इस बात को भूल गए की परिवर्तन ही जीवन का नियम। वक्त और परिस्थिती के अनुसार इंसान को बदलना ही पड़ता है। वोटर तो बदल गया लेकिन बीजेपी की सोच नहीं बदली। शहर के वोटर को अब मंदिर से मतलब नहीं रह गया। हिन्दुत्व के मुद्दे पर बीजेपी को कोई वोट भले ही दे दे लेकिन आज के वक्त में हिन्दुत्व के पीछे वोट देने वालों की तादात में भारी कमी आ गई है। सिर्फ पारंपरिक वोटरों ने ही बीजेपी की लाज बचा रखी है।यू.पी में वरुण ने मुस्लिम वोट को बीजेपी से दूर कर दिया तो महाराष्ट्र में शिवसेना ने उत्तर भारतीयों को बीजेपी से दूर रखा। विडम्बना तो ये है कि बीजेपी सिर्फ समाज के अलग अलग वर्गों से दूर होती जा रही है। दरसल एक वर्ग के पास आने की चाहत में बीजेपी के नेता इतना आगे निकल जाते हैं कि दूसरे वर्ग से दूर हो जाते हैं। इस बार शहर का पढ़ा लिखा वोटर बीजेपी से दूर हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजों से कम से कम ये तो साफ हो गया है। युवा नेताओं के हाथ में कमान देने से ना जाने क्यों आला नेता घबरा रहे हैं।संघ की विचारधारा के खिलाफ कोई भी टिप्पणी करने पर बड़े से बड़े नेता को बाहर जाना पड़ सकता है। नेतृत्व परिवर्तन को बेइज्जती समझा जा रहा है। कोई भी प्रमुख निर्णय लेने के लिये संघ मुख्यालय का रुख करना पड़ता है। ऐसे में बीजेपी का क्या होगा ये तो कालिया भी नहीं बता पाएगा।

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