Saturday, September 19, 2009

शहादत का मज़ाक या मज़ाक की शहादत


13 सितंबर 20 08 को दिल्ली में चार जगहों पर धमाके हुए 27 मरे और 100 से ज्यादा घायल हो गए। हमेशा की तरह दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम दिवंगत इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की अगुआई में आतंकियों की तलाश में निकली। 19 सितंबर 2008 को लोधी रोड थाने के पीछे स्थित सेल के ऑफिस से मोहनचंद अपनी टीम के साथ दोपहर करीब डेढ़ बजे निकले। ऑफिस से निकलते वक्त उन्हें एक रिपोर्टर बाहर खड़ा मिला। मोहनचंद ने रिपोर्टर को कहा जल्द ही खुशखबरी दुंगा और फिर दो छोटी कारों में सवार होकर उनकी टीम निकल पड़ी। शाम के करीब साढ़े छः बजे टीवी चैनल्स पर ब्रेकिंग चलनी शुरू हो गई साल भर की सबसे बड़ी खबर की "दिल्ली के बाटला हाउस में पुलिस के साथ संदिग्ध आतंकियों की मुठभेड़ जारी"। ब्रेकिंग की दूसरी लाइन पढ़कर सारे क्राइम रिपोर्टर्स की रूह कांप गई। ब्रेकिंग की दूसरी लाइन थी "इंस्पेक्टर मोहचंद शर्मा को गोली लगी"। इसके बाद सारे न्यूज़ चैनल्स बाटसा हउस पहुंच गए। मैं भी वहां पहुंचा लेकिन वहां का माहौल देखकर हक्का बक्का रह गया। बाटला हाउस इलाके के आस पास रहने वाला हर एक शख्स इनकाउंटर को फर्जी बता रहा था। हर शख्स मीडिया पर गुस्सा था। कई रिपोर्टर्स से तो मारपीट भी की गई। खैर किसी तरह वहां से निकलकर हम होली फैमिली अस्पताल पहुंचे जहां मोहन चंद भर्ती थे। पता चला कि उन्हें तीन से चार गोलियां लगी हैं। इसके अलावा एक कांस्टेबल को भी हाथ पर गोली लगी थी। रात के करीब दस बजे मोहन चंद की टीम के लोग रोते हुए अस्पताल से बाहर आते हुए दिखे। हम सबकी आखों में आंसू आ गए लेकिन फिर भी हिम्मत करके हमने खबर ब्रेक करवाई "मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए"। करीब 55 आतंकियों का एनकाउंटर करने वाला एक ईमानदार और हर किसी का चहेता हमेशा के लिये चला गया था। लेकिन जामिया नगर में रहने वाले लोगों की टिप्पणियां सुनकर खून खौल सा जा रहा था। सारे न्यूज़ चैनल्स ने पुलिस का पूरा साथ दिया , कुछ अखबारों ने इस एनकाउंटर को फर्जी करार देने का पूरा प्रयास किया था। उसके बाद भारतीय राजनीति के सबसे शातिर नेता अमर सिंह बाटला हाउस पहुंचे और सेंक दी राजनैतिक रोटियां। जामिया नगर के लोगों की गलतफहमी को और भड़का दिया। संसद में भी कुछ नेताओं ने अखबार उठा कर हवा में लहराए और एनकाउंटर की जांच के आदेश दे दिये गए। मानवाधिकार आयोग ने करीब नौ महीने के बाद स्पेशल सेल की टीम को क्लीन चिट दे दी। लेकिन इस घटना के बाद कोई भी पुलिस वाला गोली चलाने से पहले दस बार सोचता है और ग्यारहवीं बार पिस्तौल हॉल्स्टर में वापस रख लेता है कोई भी अपनी शहादत का मज़ाक नहीं उड़ने देना चाहता। अपने आप को कल तक बड़ा ही बुद्धीजीवी और सेक्यूलर मानने वाले जामिया नगर के निवासी पत्रकार मारे गए आतंकियों को आखिरी सलामी (मिट्टी देने ) भी पहुंच गए। अजीब सा तनाव पैदा हो गया दो कौमों के बीच। यहां तक की मेरी मुंह बोली बहन (जो कि एक मुस्लिम है), इस एनकाउंटर को फर्जी बता रही है। हालांकि ज्यादातर लोगों का इस एनकाउंटर और मारे गए आतंकियों से कोई सरोकार नहीं था, लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रस्त सभी लोग इसे एक ज़ुबान से फर्जी एनकाउंटर करार दे रहे थे। कोई इस बात को लेकर अड़ा था कि आतंकियों के पास अगर ए.के 47 राइफल थी तो उन्होंने उसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया।कुछ के पास ये दलील थी की उन्होंने कुछ पुलिस वालों को एल 18 की छत पर खड़े होकर हवाई फायरिंग करते हुए देखा। इसके अलावा कई दलीलें ऐसी थी जो थीं तो बहुत ही टुच्ची लेकिन उनका जवाब कोई सुनना नहीं चाह रहा था। आज शहीद मोहनचंद शर्मा के परिवार के ऊपर जो गुज़र रही है उसे ये लोग समझना नहीं चाहते। या शायद समझकर भी नहीं समझते। एक एनकाउंटर ने भारत को हिला कर रख दिया। एनकाउंटर दिल्ली में हुआ और बनारस में बैठे लोग इसे फर्जी करार देते हुए ये कह रहे थे कि पुलिस वाले को तो पुलिस वाले ने ही गोली मार दी ताकि एनकाउंटर को सच साबित कर सकें लेकिन मैं तो ये कहुंगा कि ऐसे लोगों ने देशभक्ति का ही एनकाउंटर कर दिया ताकि एनकाउंटर को झूठा साबित कर सकें। हालांकि मैं जानता हूं कि मेरा ये छोटा से लेख कुछ नहीं बदल सकता , लेकिन फिर भी एक साल बाद ही सही मैं आपको कुछ ऐसे तथ्य बताता हूं जो एनकाउंटर को फर्जी या असली साबित करते हैं-

1-पहला और सर्वव्यापी सच जिसे लोग जान कर भी नहीं समझते कि फर्जी एनकाउंटर कभी भी रिहायशी इलाकों में नहीं होते।क्योंकि बंदूक से निकली गोली दीवारों से टकराकर किसी को भी लग सकती है।

2- ए.के 47 कोई तभी इस्तेमाल कर सकता है जब वो उसके हाथ में हो यानि की हमले के लिये तैयार बैठा हो। जल्दबाजी में जो हाथ आया उसे ही अपने बचाव में चला देते हैं। कोई भी आतंकी पुलिस को देखने के बाद ए.के 47 ढूंढने नहीं जाता।

3-पुलिस हवाई फायरिंग आतंकियों को डराने के लिये करती है ताकि कोई भी आतंकी गोली चलने की आवाज सुनकर अपनी पोज़िशन चेंज ना कर सके।

4- किसी भी फर्जी एनकाउंटर में पुलिस वालों को गोली नहीं लगती। और अगर गलती से लग भी गई तो इतनी नहीं लगती की उसकी मौत ही हो जाए।

5- एनकाउंटर के इरादे से निकली किसी भी पुलिस टीम के पास बुलेट प्रूफ जैकेट और तमाम तरह के आधुनिक असलहे होते हैं। लेकिन स्वर्गीय शर्मा जी की टीम सिर्फ आतंकियों की रेकी यानि की पहचान के लिये निकली थी।

6- स्पेशल सेल के डीसीपी इतने बेवकूफ नहीं है कि हाथों में पिस्तौल लेकर एल-17 के सामने फोटो खिंचवा ले।

7- जो आतंकी इसमें मारा गया था उसका भाई एक अंग्रेजी न्यूज़ चैनल में कैंरामैन है।और मारा गया आतंकी 4 सालों से दिल्ली में ही अपना घर छोड़कर दूसरे फ्लैट में रह रहा था।

बहरहाल दलीलें तो बहुत हैं, मेरे पास भी और आपके पास भी, लेकिन पिछले एक साल से उन्हें मानने के लिये कोई तैयार नहीं। ना आप ना हम।लेकिन अगर हो सके तो शहादत को सलाम करना सीख लीजिये कोई आपसे देश के लिये आपकी जान नहीं मांग रहा।

जय हिंद

2 comments:

  1. वाकई बंधु.. ये बेहद शर्मनाक बात है कि एक जांबाज इंसपेक्टर की शहादत में भी राजनेताओ ने सियासत खोज ली..इसके लिए वो राजनेता तो दोषी है ही ,लेकिन वो तथाकथित बुद्दिजीवी पत्रकार भी कम गुनाहगार नही है (क्योकि राजनेताओ के मुकाबले इनसे कही ज्यादा सच्चाई की अपेक्षा की जाती है)जिन्होने इसे फर्जी ठहराने या सवाल उठाने मे कोई कसर नही छोडी ..बहराहल शहीद इसपेक्टर शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी ये बात काफी पहले ही साफ हो गई थी कि इसपेक्टर शर्मो को जो गोली लगी थी ,वो आतंकियो की बंदूक से ही निकली थी और गोली उनके सीने मे लगी थी ..ना कि पीठ मे जैसा कि सच्चाई से अनजान लोग आरोप लगा रहे थे .. इस इंकाउटर के एक साल गुजर जाने के बाद भी मीडिया मे जो रिपोर्टिग हुयी , उसे देखकर और पढकर कही ना कही दुख हुआ कि कुछ लोग को सिर्फ दहशतगर्दो के परिवार का ही दुख नजर आया...ये पत्रकारो की वो जमात है जिसे सिर्फ आंतकियों के मारे जाने पर मानवाधिकार की याद आती है..बेकसूरो के मारे जाने पर उन्हे कोई मानवाधिकार हनन नही नजर आता

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