Wednesday, May 27, 2009

पत्थर

एक बार की बात है, मैं नया नया जनमत में क्राइम रिपोर्टर बना था.यूं तो क्राइम रिपोर्टिंग का बड़ा शौक था लेकिन कभी इतनी कर्री क्राइम रिपोर्टिंग की नहीं थी.रात की शिफ्ट के दौरान एक रोज़ मुझे ख़बर मिली की बाराखम्भा रोड पर एक बिल्डिंग से किसी आदमी ने छलांग लगा कर सुइसाइड कर लिया है.हम अपनी युनिट के साथ वहां पहुंचे तो देखा कि एक अधेड़ उम्र का आदमी बिल्डिंग के नीचे टुकड़ों में पड़ा हुआ था.मंजर इतना खौफनाक था कि मुझे चक्कर आने लगे.उसके बाद तीन चार दिनों मुझे सपनों में भी वही सब नज़र आता था.
और आज मैं सोचता हूं,एक वो भी अभिषेक था.करीब एक साल पहले नोएडा में शीबा नाम की एक एक्स एयर होस्टेस का मर्डर हो गया.हम वहां पहुंचे तो अस्पताल की शवगृह में उसकी लाश रखी थी.कुछ देर तक हम सारे रिपोर्टर्स वहां खड़े होकर एक दूसरे से सीएसआर(कॉमन सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी) के तहत शॉट्स और डिटेल्स का आदान प्रदान कर रहे थे.थोड़ी देर में लाश से रिस रहा खून पास में खड़े रिपोर्टर्स के पांवों तक पहुंच गया.हंसी ठिठोली में मशगूल मैंने कहा "अरे थोड़ा साइड हो जाओ वर्ना 120 बी में तुमलोग भी बुक हो जाओगे." और हम सब एक कदम दूर हटकर खड़े हो गए और फिर से अपनी अपनी बकवास करने लगे.थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ कि कोई हमें देख रहा है.मरने वाली का ब्वॉयफ्रेंड हमें बहुत देर से देख रहा था.जब मेरी नज़रें उससे मिलीं तो मैं शर्मिंदा हो गया.लेकिन वो मुझसे पूछ बैठा "तुम लोग रिपोर्टर हो या पत्थर".और तब से मुझे वाकई एहसास होता है कि हमारे अंदर का एहसास मर चुका है.खून और लाशें देख-देख कर अब उनकी कोई कद्र नहीं रह गई है.

10 comments:

  1. सच लेकिन कितनी दर्द भरी बात है............संवेदनाएं मर गयी हैं

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  2. एक रिपोर्टर का स्वागत है।

    चाहे दिन का हो या रात का रिपोर्टर, हमें आशा है कि उसकी सम्वेदनाएँ जीवित रहेंगीं। साथ ही ऐसी भी सिर नहीं चढ़ेंगी कि व्यवसायिकता को ही लील लें।

    अनुरोध यदि word verification रखा है तो हटा दें।

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  3. बेहतर है श्रीमान...
    शुभकामनाएं.....

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  4. ye sach hai
    sach k liye badhai!

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  5. मेरे भाई इसमें कुछ आश्चर्य वाली बात नहीं है !
    जब एक ही चीज बार-बार सामने आती है तो इंसान अभ्यस्त हो जाता है !

    अक्सर डाक्टरों और नर्सों पर इल्जाम लगता है संवेदनाओं के मरने का ! आप जरा उनकी जगह पर स्वयं को रखकर सोचिये वो तो दिन रात इसी तरह के घटना क्रम का सामना करते हैं ! आप तो अपने किसी परिचित के साथ ही कुछ घटने पर ऐसे हालत का सामना करते हैं !

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  6. journalist kee samvednaye mar gai tabhee to wah dikhaya or prakashit kiya jata hai jo samaj ke hit me nahi hai. we r just business man.narayan narayan

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  7. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी

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  8. aap nischit hee prabhaavpurn lekhan ki kaabiliyat rakhte hain.....

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  9. Welcome to hindi blogs.
    you have again underlined a cruel reality of medias world which we notice every now and then.you are more sensitive than others so u have given yr thoughts your words.
    this is how life runs.
    best wishes.
    dr.bhoopendra

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