एक दिन मैं जी मेल पर अपने एक पुराने मित्र के साथ चैटिंग कर रहा था।उसने मुझसे पूछा कि तुम कहां हो और क्या कर रहे हो। मैंने तपाक से टाइप किया भाई वहीं पर हूं स्टिल ए स्लमडॉग रिपोर्टर।फिर मेरे मित्र ने पूछा कि मैंने ऑरकुट, फेस बुक, जीमेल हर जगह अपने को स्लडॉग रिपोर्टर क्यों लिख रखा है। मेरे जवाब ने उसे हैरत में डाल दिया। दरसल स्लमडॉग रिपोर्टर वो होता है जो किसी दलित चैनल में काम करता है। है।जो खबरें तो ब्रेक करता है लेकिन किसी को पता ही नहीं चलता ।वो एक्सक्लूज़िव भी करता है लेकिन किसी के कान में जूं नहीं रेंगतीं। अपनी हर खबर को उसे बड़े चैनल के रिपोर्टर को तोहफे के तौर पर देनी पड़ती है ताकि उसका इम्पैक्ट हो। दिन भर बस खबरों के पीछे भागता रहता है और जब पेट में दर्द होता है तो याद आता है कि खाना तो सुबह से खाया ही नहीं। फिर दो कदम आगे चलता है तो उसे महसूस होता है कि उसका ब्लैडर फटने को है, क्योंकि जब से शूट पर निकला है तब से ट्वायलेट करने का वक्त ही नहीं मिला।अपने शरीर हर तरह से अत्याचार करता है।जब रात को वो घर पहुंचता है तो उसकी हालत देखकर ऐसा लगता है मानो एक बीघा खेत को दस ट्रैक्टरों ने एक साथ जोत दिया हो। रात को दो बजे सोता है तो सुबह नींद बॉस के फोन से खुलती है। सुबह सात बजे का लाइव मांगता है। बेचारा बिन नहाए धोए स्पॉट पर पहुंच जाता है।अगर बुलेटिन शुरू होने तक लाइव पर खड़ा नहीं हुआ तो एसाइनमेंट सिर पर धनिया बो देता है और बॉस छाती पर चरस बो देता है। कुछ पुलिस वाले मित्रों के साथ बैठकर अपने आपको दिल्ली का राजा समझता है। बाहरी दुनिया के लोगों में उसकी बहुत अहमियत है ,लोग उसे बहुत बड़ा आदमी समझते हैं इसलिये वो लोगों को अपनी सैलरी नहीं बताता।कभी किसी को बता भी देता है तो उसे विश्वास नहीं होता।कभी कहीं से कोई जबरदस्त ऐतिहासिक स्टोरी करके ला देता है तो पता चलता है कि ये स्टोरी यहां नहीं चल सकती।उसके पास कपड़े धोने का वक्त नहीं होता मजबूरी में उसे बदबूदार कपड़े पहनने पड़ते हैं।लेकिन शेव हर रोज़ करना होता है वर्ना बॉस की गालियां पड़ेंगी और पीटीसी भी ऑन एयर नहीं होगा।उसके पड़ोसी भी नहीं जानते की घर में वो कब रहता है, क्योंकि जब वो सोते हैं तब रिपोर्टर घर पहुंचता है और उनके उठने से पहले ही ऑफिस के लिये निकल जाता है। बड़ा ही जीवट प्राणी होता है ये स्लमडॉग रिपोर्टर। मां से मिलने के लिये उसे छुट्टियां नहीं मिलतीं।मां और भाई हर रोज़ एक सवाल ज़रूर करते हैं कि घर कब आना होगा। कभी कभी उसे काफी इज्जत मिलती है जब किसी की गाड़ी पकड़ ली जाती है या फिर कोई पुलिस के पचड़े में फंस जाता है तो उसे स्लमडॉग रिपोर्टर याद आता है।कभी मैच के पास जुगाड़ने तो कभी मोबाइल खोने की रपट लिखवाने में वो लोगों की गाहे बगाहे मदद कर दिया करता है। यही स्लमडॉग रिपोर्टर कहलाता है।
Sunday, April 11, 2010
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जबरजस्त...no more words to say...
ReplyDeleteKya have you stop writing or you are not getting time....! do visit my blog some Hindi poetry and I hope you'll like it
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