वोट फॉर नोट से तो आप सब वाकिफ होंगे। किस तरह सरकार बनाने के लिये सांसदों और विधायकों को पैसे दिये जाते हैं। मैं जो बता रहा हूं उसे भी सरकार बनाने के लिये ही इस्तेमाल किया जाता है। हमारा मकान बनारस से करीब 10 किलोमीटर दूर मुगलसराय में है। मुगलसराय पहले बनारस जिले का हिस्सा था लेकिन मायावती जी ने उसे काटकर चंदौली ज़िले में जोड़ दिया। पूरे चंदौली जिले में मुगलसराय जितना बड़ा शहर कोई नहीं है। यहां तक की मुगलसराय खुद चंदौली से बड़ा और विकसित है। साथ ही मुगलसराय एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड है। बहरहाल इतना सबकुछ होने के बाद भी सुबह सुबह मेरी मां को उठकर सबसे पहले एक ही काम करना पड़ता है, और वो है पानी का मोटर चलाना। क्योंकि अगर मोटर नहीं चलाया तो ना जाने अगली बार बिजली कब आएगी। कभी कभी बिजली दोपहर में आकर आंखमिचौली खेल जाती है तो कभी शाम में। हां रात के बारह बजे से सुबह के 6 बजे तक बिजली रहती है। यानि 24 घंटे में मात्र 6 घंटे। इन्वर्टर की बैटरी भी हर दिन बोल जाती है।और कभी गलती से बिजली चोरों की वजह से कोई ट्रांस्फॉर्मर फूंक गया तो गए तीन चार दिन,एक बार तो हफ्ते भर तक बिजली नहीं थी ।ये सब पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि पूर्वी यू.पी का कितना बुरा हाल है। लेकिन ज़रा ठहरिये, चंदौली जिले में ही मेरी बूआ का गांव है "त्रिपाठ"। घर से चंद किलोमीचर होने की वजह से हम गांव का मज़ा लेने अक्सर वहां जाया करते थे। फूफा जी के छोटे भाई वहां के ग्राम प्रधान हुआ करते थे। लेकिन गांव पहुंचकर तो हमें शहर का मजा मिलता था । हम ये देखकर अचंभित रह गए कि गांव में एक सेकेंड के लिये भी बिजली नहीं जाती। साफ सुथरी चिकनी सड़कें खेतों के बीच से निकलकर आ रही गंदगी का कोई नामोनिशान नहीं चारों ओर पक्की सड़क औऱ नालियां बन चुकी हैं।ये सब देखकर हमने अपने ग्राम प्रधान फूफा जी के भाई से पूछा कि ये कैसे हो रहा है। प्रधान जी का जवाब भी कमाल था...दै मर्दे, जब वोटे ना देबा त लाइटिया कहां से आई...अर्थात् जब वोट ही नहीं दीजियेगा तो बिजली कहां से आएगी। ये हमारे लिये तो एक मज़ाक था लेकिन असल में ये यू.पी की गंदी राजनीति का एक नमूना भर था। दरसल किसी भी पार्टी को मुगलसराय से ज्यादा वोट गांवों से मिलते हैं। चाहे समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी। हां बीजेपी को ज्यादा वोट शहर से मिलते हैं और कांग्रेस को भी। वोट पाने के लिये नेता इस हद तक गिर गए हैं कि एक विकासशील शहर (जिसे कि मिनी महानगर कहा जाता है) को बिजली ना देकर गांवों में बिजली दे रहे हैं। ये सबकुछ सोच समझकर किया जा रहा है। शहरी वोटर कितना भी ज्यादा वोट कर ले कभी 35 प्रतिशत का आंकड़ा पार नहीं होता, वहीं गांवों में ये आंकड़ा 60 प्रतिशत के पार ही रहता तो भइया बिजली की हालत तो मुगलसराय में ऐसी ही रहनी है। अगर आपको शहर का मज़ा लेना है तो चलिये गांवों की ओर। यू.पी के महान नेताओं और महानतम् राजनीति को साष्टांग दंडवत।
जय हिन्द
Sunday, August 30, 2009
Saturday, August 15, 2009
62 साल का बूढ़ा इंडिया
ये इंडिया भी अजीब है
आज इसका 62 वां जन्मदिन है
फिर भी देखने से बिल्कुल बच्चे जैसा लगता है
कई चोटें दीं लोगों ने इसको लेकिन किसी को पलटकर कभी नहीं मारता है।
ये इंडिया भी अजीब है
कोई खादी पहने मंत्री कभी तिरंगे को उल्टा टांग देता है
कोई मदरसा कभी वंदे मातरम् गाने पर फतवा जारी कर देता है
आधे से ज्यादा लोगों को वंदे मातरम् और जन गन मन में फर्क नहीं पता है।
ये इंडिया भी अजीब है
कभी सालों पहले हुए संसद पर हमले के आरोपी की फांसी की सजा टाल दी जाती है
कभी दस आतंकी सरहद पार से आते हैं और सीना छलनी कर जाते हैं
और देश चलाने वाले नेता ये कह देते हैं कि बड़े बड़े शहरों में छोटी मोटी वारदातें होती रहती हैं।
ये इंडिया भी अजीब है
कभी बिल्किस की चीख किसी को सुनाई नहीं देती
तो कभी गोधरा में खड़ी ट्रेन में खुद से ही आग लग जाती और 59 मर जाते हैं
कभी "नोबडी किल्ड जेसिका" अख़बारों की हेडलाईन बन जाती है।
ये इंडिया भी अजीब है
दिल्ली में मेट्रो बन जाती है तो हम बड़े खुश हो जाते हैं
कभी लगता है कि देश वाकई तरक्की कर रहा है
लेकिन एक विदेशी अपने ही देश में आकर स्लडॉग मिलियनेयर बनाकर हमें आईना दिखा जाता है।
वाकई ये इंडिया भी अजीब है।
जय हिन्द
आज इसका 62 वां जन्मदिन है
फिर भी देखने से बिल्कुल बच्चे जैसा लगता है
कई चोटें दीं लोगों ने इसको लेकिन किसी को पलटकर कभी नहीं मारता है।
ये इंडिया भी अजीब है
कोई खादी पहने मंत्री कभी तिरंगे को उल्टा टांग देता है
कोई मदरसा कभी वंदे मातरम् गाने पर फतवा जारी कर देता है
आधे से ज्यादा लोगों को वंदे मातरम् और जन गन मन में फर्क नहीं पता है।
ये इंडिया भी अजीब है
कभी सालों पहले हुए संसद पर हमले के आरोपी की फांसी की सजा टाल दी जाती है
कभी दस आतंकी सरहद पार से आते हैं और सीना छलनी कर जाते हैं
और देश चलाने वाले नेता ये कह देते हैं कि बड़े बड़े शहरों में छोटी मोटी वारदातें होती रहती हैं।
ये इंडिया भी अजीब है
कभी बिल्किस की चीख किसी को सुनाई नहीं देती
तो कभी गोधरा में खड़ी ट्रेन में खुद से ही आग लग जाती और 59 मर जाते हैं
कभी "नोबडी किल्ड जेसिका" अख़बारों की हेडलाईन बन जाती है।
ये इंडिया भी अजीब है
दिल्ली में मेट्रो बन जाती है तो हम बड़े खुश हो जाते हैं
कभी लगता है कि देश वाकई तरक्की कर रहा है
लेकिन एक विदेशी अपने ही देश में आकर स्लडॉग मिलियनेयर बनाकर हमें आईना दिखा जाता है।
वाकई ये इंडिया भी अजीब है।
जय हिन्द
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